बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा किसानों को कम पूंजी में अधिक आमदनी के उदेश्य से ” जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम ” या ” मौसम के अनुकूल कृषि कार्यक्रम ” की शुरुआत की है इस कृषि कार्यक्रम को पिछले साल बिहार के आठ जिलों में इसकी शुरुआत की गई थी जिसके बेहतर परिणाम के बाद अब इस जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम योजना को बिहार के सभी जिला में लागु कर दिया गया है यह योजना जल-जीवन-हरियाली अभियान केअंतर्गत लाया गया है।
क्या है जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम?
इस जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत किसानो को मौसम के अनुकूल फसलों की बुआई और कटाई तथा वैज्ञानिक तरीके से खेती करना सिखाई जाती है। मौसम के अनुकूल खेती से तीन राउंड की खेती होगी, जिससे कृषि उत्पादकता बढ़ेगा और किसानों की आय बढ़ेगा.
कृषि विभाग के द्वारा पांच गांव के कुछ किसानों की जमीन पर खुद बुआई कराती है जिसमें बुआई का खर्च तक सरकार ही उठाती है।
चिन्हित प्रत्येक जिला से 05 गाँव को चिन्हित किया जायेगा। इस प्रकार कुल 40 गांवों को मॉडल गांव के रूप में विकसित किया जायेगा। ये गांव दूसरे गांवों के लिए भी नजीर बनेगें तथा संपूर्ण राज्य में जलवायु परिवर्तन से संबंधित कृषि तकनीक को क्रमशः अपनाया जाएगा।
मौसम के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत साल 2021 में डेढ़ लाख (1,50,000) किसान प्रशिक्षित किया जायेगा जिसमे वैज्ञानिक द्वारा किसानो को खेतो में एक साल में तीन फसल उगाने का गुर सिखाएंगे, जिससे मौसम के अनुकूल फसल चक्र अपनाने से किसानों को काफी लाभ होगा।
जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत 190 गांवों को पूरी तरह इस नई पद्धति का प्रशिक्षण दे कर विकसित किया जाएगा। शेष गांवों के किसानों को भी इसे दिखाया और बताया जाएगा।
राज्य में स्थित कृषि अनुसंधान संस्थानों यथा बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया, डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूर्वी क्षेत्र, पटना के द्वारा जलवायु परिवर्तन से अनुकूलन के लिए नये क्रॉप साईकिल/कृषि तकनीक का विकास किया गया है
जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम की महत्पूर्ण बातें
- फसल की उत्पादन लागत भी घटेगी।
- जलवायु के अनुकूल कृषि से किसानों की लागत में कमी आएगी और उन्हें अधिक लाभ होगा
- जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए सभी जिलों के 5-5 गांवों का चयन किया जायेगा
- प्रथम चरण में 8 जिलों मधुबनी, खगड़िया, भागलपुर, बांका, मुंगेर, नवादा, गया व नालंदा के 40 गांवों में नये फसल चक्र के अनुसार खेती होगी|
मौसम के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का क्रॉप साईकिल
अनुसंधान संस्थानों के द्वारा नये क्रॉप साईकिल के रूप में
- धान-गेहूँ-मूंग
- मक्का-गेहूँ-मूंग
- मक्का-सरसो-मूंग
- मक्का -मसुर -मूंग
- सोयाबीन-गेंहूँ-मूंग
- सोयाबीन-रबी मक्का
आदि की खेती की जाएगी जिससे अपनाकर किसान अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है।
यह योजना प्रमुख रूप से दो प्रकार के हस्तक्षेपों को कार्यान्वित किया जायेगा।
- वर्तमान में उपलब्ध तकनीक को किसानों के खेत तक पहुँचाने से संबंधित है जिसमें जलवायु अनुकूलन तकनीक विशेषकर उपयुक्त प्रकार के कृषि यंत्र (लेजर लैण्ड लेवलिंग, जीरो टिलेज, धान की सीधी बुवाई, रेज-बेड प्लाटिंग) फसल अवशेष प्रबंधन / मल्चिंग, प्रिसिजन न्यूट्रियन मैनेजमेन्ट, न्यूट्रियन्ट एक्सपर्ट, ग्रीन सीकर, कृषि वानिकी, मौसम पूर्वानुमान के अनुसार शष्य क्रिया को अपनाने पर बल दिया गया है।
- जलवायु परिवर्तन से संबंधितं अनुकूलन एवं शमन तकनीक के विकास के लिए अनुसंधान से संबंधित कार्य किए जायेगें जो अनुसंधान संस्थानों के स्तर पर कार्यान्वित होगा।
यह परियोजना बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया, डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूर्वी क्षेत्र, पटना के द्वारा कार्यान्वित की जाएगी। बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया, पूसा नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेंगी। नोडल एजेंसी के द्वारा विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों के साथ समन्वय कर कार्य योजना को कार्यान्वित किया जायेगा। कृषि विज्ञान केन्द्रों को योजना कार्यान्वयन में शामिल किया जायेगा।
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